एक बार की बात है जब एक शेर जंगल में सो रहा था। उस समय एक चूहा उसके शरीर में उछल कूद करने लगा अपने मनोरंजन के लिए। इससे शेर की नींद ख़राब हो गयी और वो उठ गया साथ में गुस्सा भी हो गया। वहीँ फिर वो जैसे ही चूहे को खाने को हुआ तब चूहे ने उससे विनती करी की उसे वो आजाद कर दें और वो उसे कसम देता है की कभी यदि उसकी जरुरत पड़े तब वो जरुर से शेर की मदद के लिए आएगा। चूहे की इस साहसिकता को देखकर शेर बहुत हँसा और उसे जाने दिया। कुछ महीनों के बाद एक दिन, कुछ शिकारी जंगल में शिकार करने आये और उन्होंने अपने जाल में शेर को फंसा लिया। वहीँ उसे उन्होंने एक पेड़ से बांध भी दिया। ऐसे में परेशान शेर खुदको छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन कुछ कर न सका। ऐसे में वो जोर से दहाड़ने लगा। उसकी दहाड़ बहुत दूर तक सुनाई देने लगी। वहीँ पास के रास्ते से चूहा गुजर रहा था और जब उसने शेर की दहाड़ सुनी तब उसे आभास हुआ की शेर तकलीफ में है। जैसे ही चूहा शेर के पास पहुंचा वो तुरंत अपनी पैनी दांतों से जाल को कुतरने लगा और जिससे शेर कुछ देर में आजाद भी हो गया और उसने चूहे को धन्यवाद दी। बाद में दोनों साथ मिलकर जंगल की...
चींटी और कबूतर की कहानी एक बार कड़कती गर्मियों में एक चींटी को बहुत प्यास लगी हुई थी। वो पानी की तलाश में एक नदी किनारे पहुंच गयी। नदी में पानी पीने के लिए वो एक छोटी सी चट्टान पर चढ़ गयी और वहां पर वो फिसल गयी और फिसलते हुए नदी में जा गिरी। पानी का वहाव ज्यादा तेज़ होने से वो नदी में बहने लगी। पास ही में एक पेड़ पर कबूतर बैठा हुआ था। उसने चींटी को नदी में गिरते हुए देख लिया। कबूतर ने जल्दी से एक पत्ता तोडा और नदी में चींटी के पास फेंक दिया और चींटी उसपर चढ़ गयी। कुछ देर बाद चींटी किनारे लगी और वह पत्ते से उतर कर सूखी जमीं पर आ गयी। उसने पेड़ की तरफ देख और कबूतर को धन्यबाद दिया। शाम को उसी दिन एक शिकारी जाल लेके कबूतर को पकड़ने आया। कबूतर पेड़ पर आराम कर रहा था और उसको शिकारी के आने का कोई अंदाजा नहीं था। चींटी ने शिकारी को देख लिया और जल्दी से पास जाके उसके पॉंव पर जोर से काटा। चींटी के काटने पर शिकारी की चीख निकल गयी और कबूतर जाग गया और उड़ गया। नैतिक शिक्षा: कर भला हो भला। अगर आप अच्छा करोगे तो आपके साथ भी अच्छा होगा।
बहुत साल पहले की बात है की एक नगर में किशन नाम का लकड़हारा (Woodcutter) रहा करता था। वह अपने गुजर बसर के लिए जंगल से लकड़ी काटकर लाता और नगर में बेचता था। इन लकड़ियों को बेचने से लकड़हारे को जो पैसे मिलते थे उससे वह अपने लिए खाना खरीदकर खा लेता था। यह उसकी रोज की दिनचर्या थी। एक दिन की बात है की जंगल में लकड़हारा एक तेज बहती हुई नदी के पास एक पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काट रहा था। पेड़ से लकड़ी काटते हुए कुल्हाड़ी लकड़हारे के हाथ से छूटकर नदी में जा गिरी। कुल्हाड़ी ढूंढने के लिए लकड़हारा पेड़ से नीचे उतरा और कुल्हाड़ी ढूढ़ने लगा लेकिन बहुत प्रयास करने के बाद लकड़हारे को उसकी कुल्हाड़ी नहीं मिली। लकड़हारे ने सोचा की नदी में पानी बहुत गहरा है और बहाव भी तेज है। कुल्हाड़ी नदी में पानी के साथ बह गयी होगी। उदास और मायूस होकर लकड़हारा नदी किनारे बैठकर रोने लगा। कुल्हाड़ी खो जाने से लकड़हारा काफी दुखी था। लकड़हारे यह सोचने लगा की उसके पास इतने पैसे भी नहीं हैं की वह नयी कुल्हाड़ी खरीद सके। जब लकड़हारा दुखी होकर नदी किनारे बैठा हुआ था तब नदी से एक देवता स्वरुप मनुष्य प्रकट हुए और उन्होंने लकड़हारे को आवाज़ लगाई। देवता ...
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